मंगलवार, 3 नवंबर 2015

गुत्थी भरे चौथे दौर के बाद भी भाजपा का उत्साह कायम

गुत्थी भरे चौथे दौर के बाद भी भाजपा का उत्साह कायम

पटना। बिहार में तीसरे दौर के मतदान के रुझानों से भाजपा में लौटा उत्साह का माहौल रविवार को हुए चौथे दौर के मतदान के बाद भी बरकरार है। पिछले तीन के मुकाबले चौथे दौर में हुए ज्यादा हुए मतदान को भाजपा अपने लिए अनुकूल मान रही है। हालांकि सूबे में सबसे सजग माने जाने वाले उत्तर बिहार के इलाके में भी मतदान का आंकड़ा 60 फीसदी को पार नहीं कर सका है। 
 
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जब राजनीतिक रूप से अल्प साक्षर माने जाने वाले प्रदेशों में 70 फीसदी या उससे ज्यादा मतदान होता रहा है तो बिहार का 57 या 58 फीसदी का आंकड़ा निराश करने वाला ही है। यह एक ऐसी गुत्थी है, जिसे सभी राजनीतिक दल और चुनाव विश्लेषक पहले चरण से सुलझाने में लगे हैं।
 
चौथे चरण के 57.59 फीसदी मतदान से सवाल उठा है कि इस चरण के मतदान से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने जो मुद्दे उठाए थे क्या उनका असर हुआ है? दोनों नेताओं ने चुनाव में हिन्‍दू-मुस्लिम ध्रुवीकरण करने की गरज से नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव पर आरोप लगाया कि ये दोनों दलितों-पिछड़ों के आरक्षण का पांच फीसदी हिस्सा मुसलमानों को देना चाहते हैं। जेल में बंद शहाबुद्दीन का नाम लिए बिना यह भी कहा गया कि भाजपा हारी तो एक बाहुबली जश्न मनाएगा और पाकिस्तान में पटाखे फूटेंगे।
 
जातिगत समीकरण साधने के लिए प्रधानमंत्री ने कहीं अपने को पिछड़ी जाति का बताया तो कहीं अति पिछड़ा जाति का और यहां तक कि अपने को दलित मां का बेटा बताकर वोट मांगने में भी संकोच नहीं किया। कुल मिलाकर इस चरण में जातीय, सांप्रदायिक और राष्ट्रवादी एजेंडे की परीक्षा थी। ऊपर से यह इलाका भाजपा के असर वाला इसलिए है क्योंकि जनता दल (यू) के साथ गठबंधन के चलते भी भाजपा यहां से ज्यादा सीटों पर लड़ती रही है। इसलिए इस चरण में उसके सबसे ज्यादा विधायक मैदान में थे।
 
चौथे चरण के मतदान में पिछले चुनाव के मुकाबले तीन फीसदी ज्यादा वोट पड़े हैं। लोकसभा के मुकाबले भी एक फीसदी ज्यादा मतदान हुआ है। इस लिहाज से भाजपा दावा कर सकती है कि उसने जो मुद्दे उठाए थे, उनका असर हुआ और लोग उत्साह के साथ वोट डालने निकले, लेकिन अगर ऐसा है तो सीवान में बंपर वोटिंग होनी चाहिए थी, क्योंकि नरेंद्र मोदी और अमित शाह दोनों ने इस क्षेत्र के पूर्व सांसद शहाबुद्दीन को कई बार निशाना बनाया था, पर सीवान में सबसे कम 54 फीसदी ही मतदान हुआ।
 
सबसे ज्यादा 60 फीसदी मतदान पूर्वी चंपारण में हुआ। इसका कारण कई सीटों पर त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति या मजबूत तीसरे उम्मीदवार की मौजूदगी हो सकती है। मुजफ्फरपुर में दो महीने के अंतराल पर प्रधानमंत्री की दो बड़ी रैलियों के बावजूद सिर्फ 56.83 फीसदी मतदान हुआ, जो पिछले चुनाव के मुकाबले एक फीसदी कम है। शहरी इलाका होने के बावजूद वहां मतदान बढ़ने की बजाय कम हो गया। सीतामढ़ी और शिवहर में भी मतदान का प्रतिशत इस चरण के औसत से कम रहा।
 
जहां तक जातीय समीकरण का सवाल है तो भाजपा ने खास तौर से इस इलाके के लिए मल्लाह वोटों पर काम किया था। जयनारायण निषाद, उनके सांसद बेटे अजय निषाद और सन ऑफ मल्लाह मुकेश साहनी के जरिए अति पिछड़े समुदाय की इस जाति को साधने की कोशिश थी, लेकिन इस वोट में भी विभाजन की खबर है। 
 
कुशवाहा वोटों का रुझान महागठबंधन की ओर रहा है। मुजफ्फरपुर और रक्सौल में वैश्य समुदाय का वोट भाजपा को नहीं मिलने की खबर है, जो महागठबंधन के लिए राहत वाली बात है तो कुछ सीटों पर यादव-मुस्लिम वोटों के बंटवारे की खबर भाजपा को राहत देने वाली है।